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समुद्र की रेत

samudr ki ret

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

जानकी बल्लभ पटनायक

जानकी बल्लभ पटनायक

समुद्र की रेत

जानकी बल्लभ पटनायक

और अधिकजानकी बल्लभ पटनायक

    समुद्र की रेत

    कितनी लाडली

    और कितनी बारीक कितनी चमकदार!

    लहर-दर-लहर आकर

    तट पर लेट जाती है

    नमकीन पानी से भीगा

    बदन अपना धूप में सुखाती है।

    चंद्र किरणों में

    शीतलता भर देती है लाकर।

    ओस झरने लगती है

    चिपचिपे नमकीन बदन पर

    मीठा-मीठा पानी।

    मैं जब करीब जाता हूँ

    वह मेरी होना चाहती है

    मेरे बदन पर लदती है चिपकती है

    पीछे से मेरी आँखें भींचकर बंद कर लेती है

    कभी मेरे कंधे पर बैठ जाती है

    तो कभी सिर पर,

    क्रीड़ाप्रिय शिशु की तरह

    हँसते-हँसते नीचे लोट जाती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सिंधु उपत्यका (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : जानकी बल्लभ पटनायक
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस

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