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अपनी जगह से
इस चाय के बादजाओगी तुम अपने घर
ऐसे किसी दिन तुम्हारे अधिकारों का प्रजनन मुझसे और न हो पाएगाऔर तुम्हारी आँखों के सामने ही तलाश लूँगी मैं अपनी ज़मीन।
अपने लिए महसूस हुई हैअपनी ही ज़रूरत।
उससे अधिकधँसा है कहीं अपनी ज़मीन में।
ठंडा पानी निकलेगा...सभी रिश्तों ने अपनी वजहों से प्यार किया
बढ़ाओ बस उसका विस्तारकरो अपनी भाषा पर प्यार॥
हम चुपचाप अपनी सज़ा क़ुबूल करते हैं
अपनी धुन में।
मैं अपनी कथा कहना चाहता थाकथा शुरू करते ही
टाल नहीं सकता अपनी कही बातलौटना
मुर्दा तो सालाअपनी जगह मस्त है।
—आँखें मूँदे चला जा रहा था मैंअपनी ही धुन में।
दर्पण में अपनी सूरत निहारने लगासिर्फ़ अपनी ही आँखों में झाँकना
अक्सर, कितने पास होने के बावजूदहम अपनी-अपनी दुनिया में
तू मुझे अपनी छाया बना लेमैं तेरे साथ-साथ रहूँ
देखता हूँ अपनी यह धरतीअब मेरी अपनी ही आँखों से
अपनी चीज़ों के बारे में निष्पक्ष होना मुश्किल हैइसलिए मैंने तय किया कि
पुण्य की तरहऔर अपनी देह में लौट जाएगी
किसी शिरोरुह को क्षत-विक्षत?मैं अपनी बराबरी
जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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