उन्होंने कहा न जाओ दुनिया के छोर तक
डर जाओगे अपनी लंबी परछाईं को देख,
उस पार पंखों वाले अजगरों की दुनिया है
उनकी उगलती आग से उजली धरती
जहाँ न रात है न दिन अगर तुम पहुँचे तो
राह देखते पत्थर में बदल जाओगे,
जैसे किसी और से सुनी हो यह
अपनी कही बात
जीवन में रिहर्सल की संभावना होती तो
लिख रखे हैं पटकथा में कुछ परिवर्तन,
टाल नहीं सकता अपनी कही बात
लौटना
जाना
तुमसे प्रेम करना,
न लिखे कई दिनों तक,
पर मैं भला न था
बुरे दिनों को जीते मैं बुरा होता रहा
मैं समय की तरह अगोचर हो गया
घड़ी में घूमता लगातार
अपनी ही कही किसी बात पे सनकाया-सा
- रचनाकार : मोहन राणा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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