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राम चरन बिरही त्रिधा
राम चरन बिरही त्रिधा, मोर चकोर सुमीन।सुनि यक लखि यक लीन यक, निज-निज प्रेमहिं पीन॥
रामचरणदास
चरन छिदत काँटेन तें
चरन छिदत काँटेन तें, स्रवत रुधिर, सुधि नाहिं।पूछत हौ फिरिहौ भटू, खग, मृग, तरुबन माहिं॥
नागरीदास
हरिबंस-चरन 'ध्रुव' चितवन
हरिबंस-चरन 'ध्रुव' चितवन, होत जु हिय हुल्लास।जो रस दुरलभ सबनि कों, सों पैयतु अनयास॥
ध्रुवदास
राम चरन कब तब गुनन
राम चरन कब तब गुनन, मनन करिहि मन रोक।जिमि कामिनी मनहि मन, त्यागि लोक परलोक॥
रामचरणदास
चरन-चपल-धरनी-धरनि
चरन-चपल-धरनी-धरनि, फिरनि चारु-दृग-कोर।सुगढ़ गठनि बैठनि उठनि, त्यों चितवनि चित चोर॥
श्रीधर पाठक
राम चरन रबिमनि श्रवत
राम चरन रबिमनि श्रवत, निरषि बिरहिनी पीव।अग्नि निरषि जिमि घृत द्रवत, राम रूप लखि जीव॥
रामचरणदास
राम चरन दुख मिटत है
राम चरन दुख मिटत है, ज्यों विरही अतिहीर।राम बिरह सर हिय लगे, तन भरि कसकत पीर॥
रामचरणदास
राम चरन मदिरादि मद
राम चरन मदिरादि मद, रहत घरी दुइ जाम।बिरह अनल उतरै नहीं, जब लगि मिलहिं न राम॥
रामचरणदास
क्यों पीवहिं मो चरन-रस
क्यों पीवहिं मो चरन-रस, मुनि पीयूष बिहाय।यह जानन बालक हरी, चूसत स्वपद अघाय॥
सत्यनारायण कविरत्न
गंग प्रगट जिहि चरण तैं
गंग प्रगट जिहि चरण तैं, पावन जग कौ कीन।तिहि चरनन कौ आसरौ, आइ रसिकनिधि लीन॥
रसनिधि
‘तुलसी’ असमय के सखा
‘तुलसी’ असमय के सखा, साहस धर्म विचार।सुकृत, सील, सुभाव रिजु, राम-चरन-आधार॥