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संगत साधुन की करिये
बानी मधुर सरस मुख बोलत, अवस सुनिये भव तरिये।‘निरंजन’ प्रभु अंतर निरमल, हीये भेद बिसरिये॥
निपट निरंजन
सूपन के उतारे हलका उंटन को भार होत
कै ‘निपट निरंजन', सुनो आलमगीर,कै झाटन के उखाड़े से हल्का होत मुरदा॥
निपट निरंजन
सोने को शरीर तामे लोहे की न लागे कील
कै ‘निपट निरंजन', जस के नगारे सुन्न,कछू लदे लिये आये थे न लदे लिये जाओगे॥
निपट निरंजन
नहाय के तिलक करे मंदिर
के निपट निरंजन सो अच्छे भोग भोजन,सब भये झूटे जब माखी ने स्वाद पाई है॥
निपट निरंजन
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सूमसे तो दस हाथ गंडक के बीस हाथ
कै ‘निपट निरंजन', सौ हाथ सदा बचै,रांड भांड सांड औ बेस्या लबाड़ से॥
निपट निरंजन
इश्क होता तो शहा इन्तजाम आलम में
के ‘निपट निरंजन', सुनो आलमगीर,इश्क पाये काल इश्क जलवा-जमाल है॥
निपट निरंजन
काया वटवृक्ष थल, तीन गुन ज्ञान जल
समता सुगन्ध मन तत्व को चले पवनकै ‘निपट निरंजन', निराकार माली है॥
निपट निरंजन
ये जिब्या ऐसी पापीनी सुधी न राखे आपनी
कै ‘निपट निरंजन', सुनो आलमगीर,ये माटिके पुतले में जिब्या करामात है।
निपट निरंजन
हरि के दास कहावत हो
माया मोह लोभ नहिं छूटे, चाहत प्रेम प्रकास।कहत ‘निरंजन’ तब प्रभु रीझे, जब मन होत निरास॥
निपट निरंजन
सीस नीचे पग उँचे, फँसा था गर्भगाँठी में
कहे ‘निपट निरंजन', सुनो गँवार मन,जनम खोय दिया तैने यूँही सारी माटी में॥
निपट निरंजन
ये मेरे मंदिर और ये मेरे महल मुल्क
कहे ‘निपट निरंजन', सब मेरे मेरे कहे,अंत के समय संग आवे नहीं काड़ी है॥
निपट निरंजन
ऊँट की पूँछ सौं ऊँट बँध्यौ
निपट निरंजन
जहाँ पवन की गती नहीं
जहाँ पवन की गती नहीं, रवि शशी उदय न होय।जो फल ब्रह्मा नहीं रच्यो, निपट मांगत सोय॥
निपट निरंजन
अलीफ में मै अल्ला देखा, बैतल में बिस्मील्ला सिखा
के निपट निरंजन', खस खस दाने बीच,खुद का शहर बसा अर्श कायनात है॥
निपट निरंजन
काहू दिन मखमल गादी पर बिसराम
निपट न छोड़ो नाम, धीरज से लेवे काम,जाही विधि राखे राम वाही विधि रहिये॥
निपट निरंजन
सीखे असलोक गीता, सीखे कबीत छंद
कै ‘निपट निरंजन', आपको न जाना शठ,राम नाम नहीं पाठ सारी सीख गई धूरी में॥
निपट निरंजन
कुरान पुरान पढ़े भागवत रामायण
मक्का औ मदिना पूजा नमाज औ रखा रोजा,निपट कपट सूजा कै रो इसलाम जाने॥
निपट निरंजन
भूमि कहे मैं हूं बड़ी
कै निपट निरंजन राम से बड़े भक्तजन,जाके हृदय राम खड़ा, सो ही जानो बड़ा है।