सोने को शरीर तामे लोहे की न लागे कील
sone ko sharir tame lohe ki na lage keel
निपट निरंजन
Nipat Niranjan
सोने को शरीर तामे लोहे की न लागे कील
sone ko sharir tame lohe ki na lage keel
Nipat Niranjan
निपट निरंजन
और अधिकनिपट निरंजन
सोने को शरीर तामे लोहे की न लागे कील,
नदि के किनारे कब तक इतरावोगे।
बनी न रहेगी सदा बिगड जायेगी तेरी,
हाथ पैर छोड़कर धनी पास जाओगे॥
भजो भगवंत जासे बने रहे सब तंत,
अंत के समय कछु पाछे पछताओगे।
कै ‘निपट निरंजन', जस के नगारे सुन्न,
कछू लदे लिये आये थे न लदे लिये जाओगे॥
- पुस्तक : निपट निरंजन की बानी (पृष्ठ 77)
- संपादक : राजमल बोरा
- रचनाकार : निपट निरंजन
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1992
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