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सरल सरल तें होय हित
सरल सरल तें होय हित नहीं सरल अरु वंक।ज्यों सर सुधहि कुटिल धन, डारै दूर निसंक॥
दीनदयाल गिरि
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स्त्री सेवा पद्धति
तुम सूर्य्य हो, तुम्हारे ऊपर आलोक का आवरण है पर भीतर अन्धकार का वास है, हमें
भारतेंदु हरिश्चंद्र
सजल सरल घनस्याम अब
सजल सरल घनस्याम अब, दीजै रस बरसाय।जासों ब्रजभाषा-लता, हरी-भरी लहराय॥
सत्यनारायण कविरत्न
तम के बिपिन में सरल पंथ सात्विक को
तम के बिपिन में सरल पंथ सात्विक को,कैधों नीलगिरी पर गंगाजूकी धार है।
बलभद्र मिश्र
अब लौं न चले उस पद्धति पै
अब लौं न चले उस पद्धति पै जिस पै ब्रतशील विनीत गये।वह आज अचानक सूझ पड़ी भ्रम के दिन बाधक बीत गये॥
नाथूराम शर्मा 'शंकर'
हिंदी का रचनाकार
हिंदी का रचनाकार इतने-इतने बंधनों में जकड़ा हुआ है कि हम निर्बंध रचना की उम्मीद कर भी नहीं सकते।
त्रिलोचन
प्रीति जोरवी सरल पें
प्रीति जोरवी सरल पें, करियो कठिन निभाव।जैयबों जलधी पार परि, पेंठी कागद नाव॥
दयाराम
इकाई- IX हिंदी निबंध
हिन्दवी डेस्क
कड़वी हक़ीक़त
कृष्ण बलदेव वैद
सरल सुभाव, सील संतोषी
सरल सुभाव, सील सतोषी, जीव-दया चित-चारी।काम क्रोध-लोभादि बिदा करि, समुझि-बूझि अवतारी।