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अपनी ज़मीन
उपांशु
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अपनी जनता अपनी पृथिवी
अपने देश में अपना राज्य स्थापित हुआ है—इसी की संज्ञा स्वराज्य है। स्वराज्य की व्याख्या नाना
वासुदेवशरण अग्रवाल
कवि का कर्म
शमशेर बहादुर सिंह
पांड़े अपनी अगनि बुझावो
पांड़े अपनी अगनि बुझावो।हम तो अपणौं राह चलत हैं, तुम काहे दुख पावो॥