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वे दिन क्यों न विचारत चेतन

we din kyon na wicharat chetan

भैया भगवतीदास

भैया भगवतीदास

वे दिन क्यों न विचारत चेतन

भैया भगवतीदास

और अधिकभैया भगवतीदास

    वे दिन क्यों विचारत चेतन, मात की कूख में आय बसे हो।

    ऊरध पाँव नगे निशिवासर, रंच उसासनि को तरसे हो॥

    आव संयोग बचे कहुं जीवत, लोगन की तब दृष्टि लसे हो।

    आजु भये तुम यौवन के रस, भूल गये कित तें निकसे हो॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 220)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : भैया भगवतीदास
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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