ता दिन तें अति ब्याकुल है तिय
ta din ten ati byakul hai tiy
ता दिन तें अति ब्याकुल है तिय जा दिन तें पिय पंथ सिधारे।
भूख न प्यास बिना ब्रज-भूषन भामिनि भूषन-भेष बिसारे।
पावत पीर नहीं कवि देव करोरिक मूरि सवै करि हारे।
नारि निहारि-निहारी चले तजि बैद बिचारि-बिचारि बिचारे॥
जिस दिन से प्रियतम ने परदेस के लिए प्रस्थान किया है, तब से ही उसकी प्रिया अत्यंत व्याकुल है। ब्रज के भूषण श्री कृष्ण उसके प्रिय हैं, उनके बिना प्रिया को दुःख के कारण भूख-प्यास भी नहीं महसूस होती। उसने आभूषण, वस्त्र आदि को भी बिसरा दिया है। उसने अपना शृंगार करना भी त्याग दिया है। कवि देव कहते हैं कि वैद्य आदि उसकी पीड़ा को नहीं जान पाते। वे जान ही नहीं पाते कि उसका रोग क्या है। वे उसे स्वस्थ करने के लिए जड़ी-बूटी, उपचार करते-करते थक गए। वैद्य आकर उसे देखते हैं, उसकी ख़ूब अच्छी तरह से जाँच करते हैं, किंतु उसके रोग को नहीं पकड़ पाते। वे अपनी बुद्धि से उसका वास्तविक रोग जानने का ख़ूब प्रयत्न करते हैं और प्रयास सफल न होने पर वे उसे यों कष्ट में छोड़कर चले जाते हैं।
- पुस्तक : देव और उनका भाव विलास (पृष्ठ 133)
- संपादक : डॉ दीनदयाल
- रचनाकार : देव
- प्रकाशन : नवलोक प्रकाशन
- संस्करण : 2004
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.