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श्री सुख यौ न बखान सकै

shri sukh yau na bakhan sakai

रसखान

रसखान

श्री सुख यौ न बखान सकै

रसखान

और अधिकरसखान

    श्री सुख यौ बखान सकै वृषभान सुता जू को रूप उजारो।

    हे रसखान तू ज्ञान संभार तरैनि निहार जु रीझन हारो।

    चारु सिंदूर को लाल रसाल लसै ब्रज बाल को भाल टिकारो।

    गोद में मानौ विराजत है घनस्याम के सारे को सारे को सारो॥

    कोई गोपी अपनी सखि से राधा के सौंदर्य का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि! राधा के मुख की शोभा का कौन वर्णन कर सकता है। उसका सौंदर्य प्रकाशित करने वाला है। रसखान कहते हैं कि हे मनुष्य! तू अपना ज्ञान संभाल और यदि तू राधा के रूप का कुछ बोध करना चाहता है तो नक्षत्रों की ओर देख, अर्थात् जिस प्रकार नक्षत्रों की प्रभा अनुपम है, उसी प्रकार राधा का रूप भी अद्वितीय है। उस ब्रजबाला के मस्तक पर लगा हुआ सिंदूर का टीका अत्यंत सुंदर एवं सरस है। वह टीका ऐसा प्रतीत होता है मानो चंद्रमा की गोद में मंगल सुशोभित हो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रसखान ग्रंथावली सटीक (पृष्ठ 279)
    • रचनाकार : प्रो. देशराजसिंह भाटी
    • प्रकाशन : अशोक प्रकाशन
    • संस्करण : 1966
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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