प्रेम मरोरि उठै तब ही
prem marori uthai tab hi
प्रेम मरोरि उठै तब ही मन पाग मरोरनि मे उरझावै।
रूसे से ह्वै दृग मोसो रहै लखि मोहन मूरति मो पै न आवै॥
बोले बिना नहि चैन परै रसखानि सुने कल श्रीनन पावै।
भौह परोरिबो री रूसिबो झुकिवो पिय सो सजनी सिखरावै॥
कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण के प्रति अपने प्रेम का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि! जब भी वह अपनी पगड़ी के घुमावों में मेरे मन को उलझाता है, तभी मेरा प्रेम सजग उठता है। मेरे नेत्र मुझसे रूठे हुए से रहते हैं और वे कृष्ण को देख कर मेरे वश में नहीं रहते। कृष्ण की बातें सुने बिना मुझे चैन नहीं पड़ता, तथा उसकी बातें सुनने पर कानों को आनंद प्राप्त होता है। यह सुन कर उसकी सखी ने प्रियतम से भौंह मोड़ने की, वक्र दृष्टि से देखने की, रूठने की तथा फिर मान जाने की शिक्षा दी।
- पुस्तक : रसखान ग्रंथावली सटीक (पृष्ठ 265)
- रचनाकार : प्रो. देशराजसिंह भाटी
- प्रकाशन : अशोक प्रकाशन
- संस्करण : 1966
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