फागुन लाग्यौ जब ते तब ते
phagun lagyau jab te tab te
फागुन लाग्यौ जब ते तब ते ब्रजमंडल धूम मच्यौ है।
नारि नवेली बचै नहिं एक विसेख यहै सवै प्रेम अच्यौ है।
साँझ सकारे वही रसखानि सुरंग गुलाल लै खेल रच्यौ है।
को सजनी निलजी न भई अब कौन भटू जिहिं मान बच्यौ है॥
कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि हे सखि! जबसे फागुन का महीना लगा है, तब से सारे ब्रज-मंडल से धूम मची हुई है। कोई भी युवती इस धूमधाम से नहीं बची है और सभी ने एक विशेष प्रकार का प्रेम पी लिया है। प्रातः और सांय आनंद-सागर कृष्ण लाल गुलाल लेकर फाग का खेल खेलते रहते हैं। हे सजनी! इस फागुन के महीने में कौन ऐसी ब्रजबाला है जो निर्लज्ज नहीं बन गई है तथा जिसका मान बचा रह गया है?
- पुस्तक : रसखान ग्रंथावली सटीक (पृष्ठ 274)
- रचनाकार : प्रो. देशराजसिंह भाटी
- प्रकाशन : अशोक प्रकाशन
- संस्करण : 1966
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