लखे मुख कंजन को भ्रम जानि
lakhe mukh kanjan ko bhram jani
ललिताप्रसाद त्रिवेदी
Lalitaprasad Trivedii
लखे मुख कंजन को भ्रम जानि
lakhe mukh kanjan ko bhram jani
Lalitaprasad Trivedii
ललिताप्रसाद त्रिवेदी
और अधिकललिताप्रसाद त्रिवेदी
लखे मुख कंजन को भ्रम जानि चहूँ दिशि ते अलि ना मड़ि जाँय।
लसे अधरा वर बिंबन से शुक आपुस में न कहूँ लड़ि जाँय॥
सुने बर बीन से बैन भले ललिते मृग ना मग में अड़ि जाँय।
लला कर कोमल पाखुरी तीखी गुलाबन की न कहूँ गड़ि जाँय॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 438)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : ललिताप्रसाद त्रिवेदी
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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