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वै उनसों रति को उमहैं फिरि

wai unson rati ko umahain phiri

गोकुलनाथ

गोकुलनाथ

वै उनसों रति को उमहैं फिरि

गोकुलनाथ

और अधिकगोकुलनाथ

    वै उनसों रति को उमहैं फिरि वै उन सों विपिरीति कों रागैं।

    वै उनको पटपीत धरैं अरु वै उनहीं सो निलंबर मागैं।

    गोकुल दोऊ भरे रसरंग निसा भरि यों हिय आनंद पागैं।

    वै उनकी मुख चूमि रहैं तब वै उनको मुख चूमन लागैं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : चेतचंद्रिका (पृष्ठ 99)
    • रचनाकार : गोकुलनाथ
    • प्रकाशन : भारतजीवन प्रेस, बनारस
    • संस्करण : 1894

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