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कौड़ी सों किंकर आगे ही दौड़त

kauDi son kinkar aage hi dauDat

उदयराज जती

उदयराज जती

कौड़ी सों किंकर आगे ही दौड़त

उदयराज जती

और अधिकउदयराज जती

    कौड़ी सों किंकर आगे ही दौड़त, कौड़ी से काम करै सभ दौड़ी।

    कौड़ी से कायर सूर सों होवत, जाति से आगे रहत हथजोड़ी।

    कौड़ी से नृत्य वदित्र वनै, अरु कौड़ी से राग करै गान गौड़ी।

    उदै जती कहैं या जग में, आज सोइ बड़ो जाकि गाँठ है कौड़ी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी नीति-काव्य-धारा (पृष्ठ 87)
    • संपादक : भोलानाथ तिवारी
    • रचनाकार : उदयराज जती
    • प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1984

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