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कल काननि कुंडल मोरपखा

kal kanani kunDal morapkha

रसखान

रसखान

कल काननि कुंडल मोरपखा

रसखान

और अधिकरसखान

    कल काननि कुंडल मोर-पखा उर पै बनमाल बिराजति है।

    मुरली कर में अधरा मुसकानि-तरंग महा छवि छाजति है॥

    रसखानि लखे तन पीत पटा सत दामिनि-सी दुति लाजति है।

    वहि बाँसुरी की धुनि कान परे कुलकानि हियो तजि भाजति है॥

    कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण की शोभा तथा उनकी बाँसुरी के प्रभाव का वर्णन करती हुई कहती है कि हे सखि। कृष्ण के कानों में सुंदर कुंडल, सिर पर मोर-पंखों का मुकट और हृदय पर वैजयंती माला सुशोभित है। उनके हाथ में वंशी और होंठोंं पर मुस्कान की लहरें अत्यंत शोभा प्राप्त कर रही है। रसखान कवि कहते हैं कि उनके तन पर सुशोभित पीले वस्त्र को देखकर सैंकड़ों बिजलियों की शोभा लज्जित होती है। उसी बाँसुरी की ध्वनि कानों में पड़ने पर ब्रज-वनिताएँ अपने हृदय से वंश की मर्यादा छोड़ कर उसी ओर भागती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रसखान ग्रंथावली सटीक (पृष्ठ 229)
    • रचनाकार : प्रो. देशराजसिंह भाटी
    • प्रकाशन : अशोक प्रकाशन
    • संस्करण : 1966
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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