हम चाहैं तुम्हैं सो भले ही कहैं
hum chahain tumhain so bhale hi kahain
हम चाहैं तुम्हैं सो भले ही कहैं हम पै तुम्हरो इतबार नहीं।
तुम आग से खेलत हो दिल पै हमरे कहीं दाग़ दरार नहीं॥
हम होत निसा नित आवत है तुम्हरे मिलने को करार नहीं।
सच प्रेम को पंथ कराल बड़ा सुनो, खाना कहीं तुम हार नहीं॥
- पुस्तक : स्त्री कवि-संग्रह (पृष्ठ 99)
- संपादक : ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल'
- रचनाकार : रमादेवी
- प्रकाशन : साहित्य-भवन-लिमिटेड, प्रयाग
- संस्करण : 1940
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