धूरि भरे अति सोभित श्यामजू
dhuri bhare ati sobhit shyamju
धूरि भरे अति सोभित श्यामजू तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
खेलत खात फिरै अंगना पग पैजनी बाजति पीरी कछोटी।
वा छवि को रसखानि बिलोकत वारत काम कला निधि कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी॥
कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण की सुंदरता का वर्णन करती हुई कहती है कि धूल से सने हुए शरीर वाले श्री कृष्ण अत्यंत शोभायमान थे। ऐसी ही शोभा से युक्त उनके सिर की सुंदर चोटी बनी हुई थी। वे खेलते हुए और माखन-रोटी खाते हुए अपने आँगन में घूम रहे थे। उनके पैरों की पैंजनी बज रही थी। वे पीली लंगोटी पहने हुए थे। उनकी उस समय की शोभा को देखकर कामदेव भी अपनी करोड़ों सुंदरताओं को उस पर न्यौछावर कर रहा था। हे सखि! उस कौवे का बहुत बड़ा सौभाग्य है जो कृष्ण के हाथ से माखन-रोटी झपटकर उड़ गया।
- पुस्तक : रसखान ग्रंथावली सटीक (पृष्ठ 179)
- रचनाकार : प्रो. देशराजसिंह भाटी
- संस्करण : 1966
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