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बनिता बनि बेष चलीं थल को

banita bani besh chalin thal ko

आलम

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बनिता बनि बेष चलीं थल को

आलम

और अधिकआलम

    बनिता बनि येथ चलीं थन को बिहरै जहँ कान्ह बिहारनि सों

    अलकावलि स्वेद प्रसून लसैं प्रगटे जड़ ज्यों तमधारनि सों

    तिलकद्दुति चारु भृगम्मद सों छबि छोर लगे दृग तारर्नि सों

    कवि ‘आलम’ सोभित कंज उभै अधमैं भुवभृंग के भारनि सों

    स्रोत :
    • पुस्तक : आलम-केलि (पृष्ठ 117)
    • संपादक : भगवानदीन
    • रचनाकार : आलम
    • प्रकाशन : उमाशंकर मेहता
    • संस्करण : 1922

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