आयी हौं खेलन फाग इहाँ
aayi haun khelan phag ihan
आयी हौं खेलन फाग इहाँ वृषभानपुरी तें सखी संग लीने।
त्यों ‘पद्माकर’ गावतीं गीत रिझावतीं हाव बताइ नवीने।
कंचन की पिचकी कर में लिये केसरि के रंग सों अंग भीने।
छोटी-सी छाती छुटी अलकैं अति बैस की छोटी बड़ी परबीने॥
नायिका कहती है कि मैं अपने पिता राजा वृषभानु की नगरी अर्थात बरसाना से अपनी सखियों को साथ लेकर यहाँ गोकुल में फाग खेलने आई हूँ। कवि पद्माकर वर्णन करते हुए कहते हैं कि राधा और उसकी सखियाँ मधुर गीत गाती हैं और अनेक नई-नई चेष्टाएँ, हाव-भाव आदि करती हुई लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, उन्हें रिझाती हैं। उनके हाथों में सोने की पिचकारी है ओर केसर के रंग के समान उसका कांतियुक्त भीगा बदन सुगंध से सुवासित है। उसका वक्ष अभी छोटा ही है अर्थात उसके स्तनों का विकास पूरी तरह नहीं हुआ है। बाल बिखरे हुए हैं, आयु में भी वह अभी छोटी है परंतु बड़ी चतुर है, अर्थात बात-व्यवहार में काफ़ी समझदार एवं चतुर है।
- पुस्तक : पद्मावत पंचामृत (पृष्ठ 169)
- संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
- रचनाकार : पद्माकर
- प्रकाशन : श्री रामरत्न पुस्तक भवन, काशी
- संस्करण : 1992
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