अथ मदिरास्तवराज
ath madirastawraj
हे मदिरे! तुम साक्षात भगवती का स्वरूप हौ, जगत तुमसे व्याप्त है, तुम्हारी स्तुति करने को कौन समर्थ है, अतएव तुम्हें प्रणाम करना योग्य है।। हे मद्य! तुम्हें सौत्रामणि यज्ञ में तो वेद ने प्रत्यक्ष आदर किया है, परंतु तुम अपने सेव्य रूप प्रच्छन्न अमृत प्रवाह में संपूर्ण वैदिक यज्ञ वितान को आप्लावित करती हो, अतएव श्रुतिश्रुते तुम्हें—ऐ वारूणि! स्मृतिकारों ने भी तुम्हारी प्रवृत्ति नित्य मानी है, निवृत्ति केवल अपने पद्धतिपने के रक्षण के हेतु लिखी है, अतएव ऐ स्मृतिस्मृते! तुम्है प्रणाम है।
हे गौड़ि! पुराणों में तो तुम्हारी सुधा सारिणी कथा चारों ओर अतिवाहित है, निषेध के बहाने भी तुम्हारी विधि ही विधि है, इससे ऐ पुराण प्रतिपादिते! तुम्हें प्रणाम है।।
हे सोम सन्नते! चंद्रमा में तुम्हारा निवास, समुद्र तुम्हारी उत्पत्ति का स्थान और सकल देव मनुष्य असुर तुम्हारे पति हैं, अतएव ऐ त्रिलोकगामिनी! तुम्हें प्रणाम है।।
हे बोतल वासिनी! देवी ने तुम्हारे बल से शुम्भादि को मारा, यादव लोग तुम्है पी के कट मरे। बलदेव जी ने तुम्हारे प्रताप से सूत क़ा सिर काटा, अतएव हे शक्ति! तुम्है प्रणाम है।।
हे सकलमादकसामग्रीशिरोरत्ने! तंत्र केवल प्रचार ही को बनाए है और इनका कोई प्रयोजन नहीं था, केवल तुममें जगत् करने को इनका अवतार है, अतएव ऐ स्वतन्त्रे। तुम्है प्रणाम है।।
हे ब्रांडि! बौद्ध और जैन धर्म की तुम सारभूत हौ। मुसलमानों में मुफ्त के मिस हलाल हौ। क्रिस्तानों में भी साक्षात् प्रभु की रुधिर रूप हौ और ब्राहोधर्म की तो तुम एक मात्र आड़ हौ। अतएव हे सर्वधर्ममर्मरूपे, तुम्है प्रणाम है।।
हे शाम्पिन्! आगे के लोग तुम्हारे सेवक थे यह श्लोकों के प्रमाण सहित बाबू राजेन्द्र लाल के लेकचर से सिद्ध है तो अब तुम्हारा कैसे त्याग हो सकता है, अतएव हे सिद्धे! तुम्है प्रणाम है।।
हे ओल्डटाम! तुम्हें भारतवासियों ने उत्पन्न किया, रोम चीन इत्यादि देश के लोगों ने कुछ परिष्कृत किया, अब अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने तुम्हें फिर से नए भूषण पहिराए। अतएव हे सर्व विलायत भूषिते! तुम्है प्रणाम है।।
हे कुल मर्यादा संहार कारिणी! तुमसे बढ़कर न किसी का बल है, न आग्रह, न मान। तुम्हारे हेतु तुम्हारे प्रेमी कुल, धन, नाम, मान, बल, मेल, रूप, बरंच, प्राण का भी परित्याग करते हैं, अतएव हे प्रणयेक पात्रे, तुम्हें प्रणाम है।।
हे प्रेजुडिस विध्वंसिनी! तुम्हारे प्रताप से लोग अनेक प्रकार की शंका परित्याग करके स्वच्छंद विहार करते हैं, जिनके बाप दादा हुक्का भांग सुरती से भी परहेज करते थे, वे अब सभ्यों की मजलिस में तुम्हारा सेवन करके जाना ऐब नही समझते! अतएव हे बोल्डनेस जननि, तुम्हें प्रणाम है।।
हे सर्वानन्दसार भूते! तुम्हारे बिना किसी बात में मज़ा ही नही मिलता। रामलीला तुम्हारे बिना निरी सुपनखा की नाक मालुम होती है, नाच निरे फूटे काच और नाटक निरे उच्चाटक बेवकूफी के फाटक दिखाई पड़ते हैं, अतएव हे मजे की पोटरी, तुम्हें प्रणाम है।।
हे मुखकज्जलात्रलेपके! होटल, नाच, जाति-पाति, घाट-बाट, मेला-तमाशा, दरबार, घोड़दौड़ इत्यादि स्थान में तुम्हें लेकर जाने से लोग देखो कैसी स्तुति करते हैं, अतएव हे पूर्वपुरुषसचितविद्याधनराजसंपदकीटिजन्यकठिनप्राप्यप्रतिष्ठासमूहासत्यानाशनि! तुम्हें बार-बार प्रणाम ही करना योग्य है।
- पुस्तक : भारतेन्दुकालीन व्यंग परम्परा (पृष्ठ 39)
- संपादक : ब्रजेंद्रनाथ पांडेय
- रचनाकार : भारतेंदु हरिश्चंद्र
- प्रकाशन : कल्याणदास एंड ब्रदर्स
- संस्करण : 1956
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