वारी वारी वारी वारी
wari wari wari wari
वारी वारी वारी वारी वारी वारी वारी म्हारा परम गुरुजी।
आज म्हारो जनम सफल भयो, मैं गुरुदेवजी ने देख्या॥
भाग हमारा हे सखी, गुरुदेवजी पधार्या।
काम, क्रोध, मद, लोभ ने ये, म्हारा दूर निवार्या॥
सोव्हन कलश सामेलसा ये, मोतीड़ा बधासां।
पग मंड पधरावस्यां ये, मिल मंगल गास्यां॥
बंदनवार घलावस्यां ये, मोत्यां चौक पुरावस्यां।
पर दिखणां परणाम स्यूं ये, चरणां शीश निवास्यां॥
ढोल्यो रतन जड़ावरो ये, रेशम गिदरो बिछास्यां।
सतगुरु ऊँचा बिराजसी ये, दूधा चरण पखास्यां॥
भोजन बहुत परकार का ये, कंचन थाल परोसां।
सतगुरु जीमे आंगणे ये, पंखा बाय ढुलास्यां॥
चरण खोल चिरणामृत ये, सतगुरुजी का लेस्यां।
तन-मन री हेली बातड़ली ये, म्हारा गुरुजी ने कहस्यां॥
आज सुफल म्हारा नेणज ये, गुरुदेवजी ने निरखूं।
कान सुफल सुण बेणज ये, दूरी नहीं सरकूं॥
आज म्हारे आनंद बधावणा ये, बायां मन भाया।
'राना' रे घरां बधावणा ये, गुरु 'खोजीजी' आया॥
- पुस्तक : जाटों की गौरव गाथा (पृष्ठ 43)
- रचनाकार : रानाबाई
- प्रकाशन : राजस्थानी ग्रंथागार
- संस्करण : 2016
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