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विश्वास कौ अंग

vishvaas kau a.ng

वाजिद

वाजिद

विश्वास कौ अंग

वाजिद

और अधिकवाजिद

    रिदै न राखी वीर कलपना कोय रे।
    राई घटे न मेर होय सो होय रे।
    सप्तदीप नवखंड जोय कि न ध्यावही।
    हरि हाँ, लिख्यो कलम की कोर वोहि पुनि पावही॥

    रिजकन राखी राम सबन को पूरही।
    काहे को वाजिद वृथा तूँ झूरही॥
    जन्म सफल कर लेयक गोविंद गायके।
    हरि हाँ, जाको ताके पास रहेगो आयके॥

    ज्यूँ ग्रीषम के अंत सुवर्षा आत है।
    वर्षा भये व्यतीत शीत मधुरात है॥
    ऐसे ही सुख दुःख अनुक्रम लेखिहैं।
    हरि हाँ, कबहुँक दई सुदृष्टि हमहुँ पर देखिहैं॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत-सुधा-सार (पृष्ठ 563)
    • संपादक : वियोगी हरि
    • रचनाकार : वाजिद
    • प्रकाशन : सस्ता साहित्य मंडल, प्रकाशन
    • संस्करण : 1953

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