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ये सब निज स्वारथ के गरजी

ye sab nij swarath ke garji

चरनदास

चरनदास

ये सब निज स्वारथ के गरजी

चरनदास

और अधिकचरनदास

    ये सब निज स्वारथ के गरजी।

    जग में हेत कर काहू सूँ अपने मन को बरजी॥

    रोपैं फंद घात बहु डारैं इन ते रहु डरता जी।

    हिरदे कपट बाहर मिठ बोलैं यह छल हैगी कहा जी॥

    दुख सुख दर्द दया नहिँ बूझै इनसे छुटावो हरि जी।

    सौगँद खाय झूँठ बहु बोलैं भवसागर कस तर जी॥

    बैरी मित्र सबै चुनि देखे दिल के मरहम कहँ जी।

    इनको दोष कहा कहा दीजै यह कलजुग की झर जी॥

    दुनिया भगल कुटिल बहू खोंटी देखि छाती मेरी लरजी।

    चरनदास इनकूं तजि दीजै चल बस अपने घर जी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 180)
    • रचनाकार : चरनदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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