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वैसाख धीरन किउ वाढीआ

waisakh dhiran kiu waDhia

गुरु अर्जुनदेव

गुरु अर्जुनदेव

वैसाख धीरन किउ वाढीआ

गुरु अर्जुनदेव

और अधिकगुरु अर्जुनदेव

    वैसाख धीरन किउ वाढीआ जिना प्रेम बिछोह॥

    हर साजन पुरख विसार कै लगी माइआ धोह।

    पुत्र कलत्र संग धना हर अविनासी ओह॥

    पलच-पलच सगली मुई झूठै धंधै मोह।

    इकस हर के नाम बिन अगै लईअह खोह॥

    दयु विसार विगुचणा प्रभ बिन अवर कोए।

    प्रीतम चरणी जो लगे तिन की निरमल सोए॥

    नानक की प्रभ बेनती प्रभ मिलहो परापत होए।

    वैसाख सुहावा तां लगै जा संत भेटै हर सोए॥

    प्रभु से बिछुड़ी हुई जीवात्मारूपी स्त्रियाँ बैसाख के महीने में कैसे धीरज रखें? जो पति के प्रेम से वंचित हैं और अपने प्रियतम को भुलाकर माया के छल का शिकार हो गई हैं। उनको यह ज्ञान नहीं है कि अंत समय पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी या दौलत किसी को हमारे साथ नहीं जाना, वह अविनाशी प्रभु ही हमारा असली साथी है। सारी दुनिया माया के झूठे धंधों में उलझकर मर रही है। एक प्रभु के नाम के अलावा सब कुछ रास्ते में ही छिन जाता है। असल में परमेश्वर के सिवाय और कोई अपना नहीं, इसलिए उसे भुलाकर दुःख ही उठाने पड़ते हैं। जो जीवात्माएँ प्रियतम के चरणों की शरण में जाती हैं, सच्ची शोभा उन्हीं को प्राप्त होती है। गुरु साहिब परमेश्वर से विनती करते हैं कि आप मेरे हृदय में प्रकट हो जाएँ। बैसाख के महीने में मुझे सुख का अनुभव तभी होगा जब संतों की संगति से उस प्रभु के साथ मिलाप हो जाए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु अर्जुन देव (पृष्ठ 233)
    • संपादक : महिंदर सिंह जोशी
    • रचनाकार : गुरु अर्जुनदेव
    • प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास
    • संस्करण : 2012

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