संतो कहा गृहस्त कहा त्यागी
santo kaha grahast kaha tyagi
संत दरिया (मारवाड़ वाले)
Sant Dariya (Marwad Vale)
संतो कहा गृहस्त कहा त्यागी
santo kaha grahast kaha tyagi
Sant Dariya (Marwad Vale)
संत दरिया (मारवाड़ वाले)
और अधिकसंत दरिया (मारवाड़ वाले)
संतो कहा गृहस्त कहा त्यागी।
जेहि देखूं तेहि बाहर भीतर, घट-घट माया लागी॥
माटी की भीत पवन का थंबा, गुन औगुन से छाया।
पाँच तत्त आकार मिलाकर, सहजाँ गिरह बनाया॥
मन भयो पिता मनसा भइ माई, दुख-सुख दोनों भाई।
आसा त्रस्ना बहिनें मिलकर, गृह की सौंज बनाई॥
मोह भयो पुरुष कुबुध भइ घरनी, पाँचो लड़का जाया।
प्रकृति अनंत कुटुंबी मिलकर, कलहल बहुत उपाया॥
लड़कों के संग लड़की जाई, ता का नाम अधीरी।
बन में बैठी घर-घर डोलै, स्वारथ संग खपी री॥
पाप-पुन्न दोउ पाड़-पड़ोसी, अनंत वासना नाती।
राग द्वेस का बंधन लागा, गिरह बना उतपाती॥
कोइ गृह माँड गिरह में बैठा, बैरागी बन बासा।
जन दरिया इक राम भजन बिन, घट-घट में घर बासा॥
- पुस्तक : दरिया साहब बानी और जीवन-चरित्र (पृष्ठ 65)
- रचनाकार : संत दरिया (मारवाड़ वाले)
- प्रकाशन : बेलवीडियर प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
- संस्करण : 1922
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