माघ मजन संग साधूआ

maagh majan sa.ng saadhuu.a

गुरु अर्जुनदेव

गुरु अर्जुनदेव

माघ मजन संग साधूआ

गुरु अर्जुनदेव

और अधिकगुरु अर्जुनदेव

    माघ मजन संग साधूआ धूड़ी कर इसनान॥

    हर का नाम धिआए सुण सभना नो कर दान।

    जनम करम मल उतरै मन ते जाए गुमान॥

    काम करोध मोहीऐ बिनसै लोभ सुआन।

    सचै मारग चलदिआ उसतत करे जहान॥

    अठसठ तीरथ सगल पुंन जीअ दइआ परवान।

    जिस नो देवै दइआ कर सोई पुरख सुजान॥

    जिना मिलिआ प्रभ आपणा नानक तिन कुरबान।

    माघ सुचे से कांढीअह जिन पूरा गुर मिहरवान॥

    माघ के महीने में संतों के चरण-कमलों की धूलि से अपने अंतर को पवित्र करना चाहिए। प्रभु के नाम का सिमरन करना, उसे सुनना तथा सबको ऐसा करने की प्रेरणा देना उत्तम है। हरिनाम का सिमरन करने से जन्मों-जन्मों के कर्मों की मैल धुल जाती है तथा मन से अहंकार लुप्त हो जाता है। नाम के साधक काम और क्रोध को वश में कर लेते हैं तथा लोभरूपी कुत्ते का विनाश हो जाता है। इस सच्चे मार्ग पर चलने वाले जीव की महिमा सारा संसार गाता है। अड़सठ तीर्थों में स्नान, दान और दया आदि के जो भी शुभ कर्म हैं, उन सबका फल प्रभु के नाम का सिमरन करने से सहज ही प्राप्त हो जाता है। परमेश्वर अपनी कृपा से जिसे नाम की दात बख़्श देता है, सही अर्थों में वही सुजान और ज्ञानी है। गुरु साहिब उन पर क़ुरबान जाते हैं जिनका अपने प्रभु से मिलाप हो गया। माघ के महीने में उन्हीं को पवित्र कहा जा सकता है जो गुरु के कृपापात्र बन गए हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु अर्जुन देव (पृष्ठ 242)
    • संपादक : महिंदर सिंह जोशी
    • रचनाकार : गुरु अर्जुनदेव
    • प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास
    • संस्करण : 2012

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