चेत गोविंद अराधीऐ होवै अनंद घणा॥
संत जना मिल पाईऐ रसना नाम भणा।
जिन पाइआ प्रभ आपणा आए तिसह गणा॥
इक खिन तिस बिन जीवणा बिरथा जनम जणा।
जल थल महीअल पूरिआ रविआ विच वणा॥
सो प्रभ चित न आवई कितड़ा दुख गणा।
जिनी राविआ सो प्रभू तिंना भाग मणा॥
हर दरसन कंउ मन लोचदा नानक पिआस मना।
चेत मिलाए सो प्रभू तिस कै पाए लगा॥
चैत के महीने की उपमा मनुष्य जन्म से करते हुए गुरु साहिब कहते हैं कि प्रभु प्रियतम की आराधना और भक्ति द्वारा ही सच्चा और पूर्ण आनंद प्राप्त हो सकता है। जिस नाम का सिमरन रसना द्वारा करना है, उस नाम का भेद संतों से प्राप्त होता है। जो नामभक्ति के मार्ग पर चलकर प्रियतम को पा लेता है, उसी का संसार में आना सफल है। प्रभु को पलभर के लिए भी भुलाना, अपने जन्म को व्यर्थ गँवा देना है। जो प्रभु जल में, थल में, वन में, आकाश में अर्थात् ब्रह्मांड के कण-कण में रमा हुआ है, उसे भुला देना अपार दुःख की बात है। जिन्होंने उसके मिलाप का आनंद प्राप्त कर लिया, उन्हें अति सौभाग्यशाली मानना चाहिए। गुरु साहिब कहते हैं कि मेरे मन में भी प्रभु के दर्शन की प्रबल इच्छा है। मैं भी उसके दर्शन का प्यासा हूँ। इस चैत मास में जो मुझे उससे मिला दे, मैं उसके चरणों पर नतमस्तक हो जाऊँगा।
- पुस्तक : गुरु अर्जुन देव (पृष्ठ 232)
- संपादक : महिंदर सिंह जोशी
- रचनाकार : गुरु अर्जुनदेव
- प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास
- संस्करण : 2012
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