संतो नीके गहो सतनाम
santo nike gaho satnam
संतो नीके गहो सतनाम हंस अमरपुर जाय।
फिरि-फिरि आवै फिरि-फिरि जावै फिरि-फिरि धरिया देह।
जारि मारि तन कोइला करिहें उड़ी गगन में खेह॥
जम दारुन दावा राखे हो डारे फांस अनंत।
चेतहु चीत चेतावनि नीके तोरहु काल को दंत॥
भौ जल अगम अथाह प्रबल है सतगुर करु कनहार।
सत्त सुक्रित के नावरि चढ़ि के उतरहु भौ जल पार॥
पुहुप पलंग पर पुहुप बिछवना पुहुप कि लागल घ्रानि।
उजल दसा मन मैला ना कबहीं सोइ बिमल की खानि॥
पल पल प्रेम गहो पद पंकज देखहु अरध निसान।
कहें दरिया जाके आड़ अटक नहि रमिहहिं संत सुजान॥
- पुस्तक : संत दरिया (बिहार वाले) (पृष्ठ 132)
- संपादक : काशीनाथ उपाध्याय
- रचनाकार : संत दरिया (बिहार वाले)
- प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास, पंजाब
- संस्करण : 2016
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