सखी री मेरे बिच अचरज होय
sakhi ri mere bich achraj hoy
सखी री मेरे बिच अचरज होय।
अचरज अचरज अचरज होय॥
सांचा मारग सुरत शुब्द का, सो नहिं माने कोय।
समरथ सतगुरु दीन दयाला, राधास्वामी प्रगटे सोय॥
प्रीत प्रतीत चरन नहिं धारे, भरम रहे सब लोय।
जनम मरन चौरासी फेरा, भुगत रहे सब कोय॥
करम भरम संग हुए बावरे, जनम अकारथ खोय।
राधास्वामी चरन धार हिये अंतर, तब तेरा कारज होय॥
- पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 353)
- संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
- रचनाकार : संत सालिगराम
- प्रकाशन : किताब महहल, इलाहाबाद
- संस्करण : 1981
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