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सखी! हरि परम मंगल गाय

sakhi! hari param mangal gay

संत परशुरामदेव

संत परशुरामदेव

सखी! हरि परम मंगल गाय

संत परशुरामदेव

और अधिकसंत परशुरामदेव

    सखी! हरि परम मंगल गाय।

    आज तेरे भवन आये अलख अबिगत राय॥

    लोक वेद म्रजाद कुल की कानि बानि बहाय।

    परम पद निस्सान निर्भय प्रगट होय बजाय॥

    उमगि सन्मुख अंक भरि-भरि भैंटि कंठ लगाय।

    बिलसि सुखनिधि नेम धरि सखि प्रेम सौं लौ लाय॥

    वारि तन मन प्रान धन कछु राखिये दुराय।

    'परसा' प्रभु को सौंपि सर्वस सरन रहि सुख पाय।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 278)
    • संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
    • रचनाकार : संत परशुरामदेव
    • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
    • संस्करण : जनवरी 1955

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