साधो सतगुर पूरा पाया
sadho satgur pura paya
साधो सतगुर पूरा पाया।
मन कूँ फेरि सहज घरि लाया॥
कोई कहै बैकुंठ बसीजै, बैकुंठ रहै कै जासी।
हमकू तौ सतगुर समझाया, सुरति निरंजन बासी॥
तीरथ बरत जोग जिग तपस्या, एकरत रोग बढ़ि जाई।
जन 'सेवादास' सोई समझि सयाणपण, सब तजि हरि गुण गाई॥
- पुस्तक : निरंजनी संप्रदाय और संत तुलसीदास निरंजनी (पृष्ठ 195)
- संपादक : भगीरथ मिश्र
- रचनाकार : सेवादास
- प्रकाशन : लखनऊ विश्वविद्यालय
- संस्करण : 1964
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