तहाँ मुझ कमींन की कौन चलावै
tahan mujh kaminn ki kaun chalawai
तहाँ मुझ कमींन की कौन चलावै।
जाकौ अजहूँ मुनिजन महल न पावै॥
स्यौ बिरंचि नारद जस गावै, कौंन भाँति करि निकटि बुलावै।
देवा सकल तेतीसौं कोरि, रहे दरबार ठाढ़े करि जोरि॥
सिध साधिक रहे ल्यौ लाइ, अजहूँ मोटे महल न पाइ।
सब थैं नीच मैं नाव न जांनां, कहि दादू क्यों मिलै सयांना॥
जिस परम ब्रह्म का मुनि लोग हर प्रकार के प्रयत्न करके भी ठौर-ठिकाना नहीं पा सके हैं, वहाँ मुझ नाचीज़ की क्या पहुँच हो सकती है! जिसका शिव, ब्रह्मा और नारद यशगान करते हैं, वह ब्रह्म किसलिए मुझ पर प्रसन्न होकर अपने समीप बुलाएँगे? जिस परम ब्रह्म के दरबार में समस्त तैंतीस करोड़ देवता हाथ जोड़े खड़े रहते हैं, सिद्ध-साधक जिसकी प्राप्ति के लिए लग्न लगाए रहते हैं, फिर भी आज तक उसका ठौर-ठिकाना नहीं पा सके हैं। कर्म-धर्म, ज्ञान-भक्ति से हीन मैं, उसके नाम-माहात्म्य तक को नहीं जान सका हूँ, फिर भला वह ब्रह्म मुझसे क्यों मिलेंगे?
- पुस्तक : दादू समग्र (एक) (पृष्ठ 293)
- रचनाकार : दादू दयाल
- प्रकाशन : अमरसत्य प्रकाशन
- संस्करण : 2007
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