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दुई जगदीस कहाँ ते आया

du.ii jagdiis kahaa.n te aaya

कबीर

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दुई जगदीस कहाँ ते आया

कबीर

और अधिककबीर

    दुई जगदीस कहाँ ते आया, कहु कवने भरमाया।

    अल्लह राम करीमा केसो, हजरत नाम धराया॥

    गहना एक कनक तें गढ़ना, इनि महँ भाव दूजा।

    कहन सुनन को दुर करि पापिन, इक निमाज इक पूजा॥

    वही महादेव वही महंमद, ब्रह्मा−आदम कहिये।

    को हिन्दू को तुरुक कहावै, एक जिमीं पर रहिये॥

    बेद कितेब पढ़े वे कुतुबा, वे मोंलना वे पाँडे।

    बेगरि बेगरि नाम धराये, एक मटिया के भाँडे॥

    कहँहि कबीर वे दूनौं भूले, रामहिं किनहुँ पाया।

    वे खस्सी वे गाय कटावैं, बादहिं जन्म गँवाया॥

    दो जगदीश कहाँ से आए। तुझे इस भ्रम में किसने डाल दिया। अल्लाह, राम, रहीम अलग−अलग कैसे हो सकते हैं। एक ही सोने से सब ज़ेवर बनाए गए हैं, उनमें दो भाव कैसे हो सकते हैं। एक नमाज़, एक पूजा यह सब कहने−सुनने की बातें हैं। इनको अपने वजूद से दूर कर दे। वही महादेव है और वही मुहम्मद। जो ब्रह्मा है उसी को आदम कहना चाहिए। कोई हिंदू कहलाता है और कोई मुसलमान, लेकिन रहते सब एक ही ज़मीन पर हैं। एक वेद पढ़ता है और दूसरा ख़ुतबा। एक मौलाना कहलाता है और एक पंडित। नाम अलग−अलग रख लिए हैं, वैसे बर्तन सब एक ही मिट्टी के हैं। कबीर कहते हैं कि वे दोनों भटक गए हैं। राम (ख़ुदा) को किसी ने नहीं पाया। एक बकरा काटता है और दूसरा गाय ज़िबह करता है और दोनों इसी झगड़े में अपना जीवन व्यर्थ गँवाते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कबीर बानी (पृष्ठ 106)
    • रचनाकार : अली सरदार जाफ़री
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
    • संस्करण : 2010

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