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रे चित चेतसि कीन दयाल

re chit chetasi kiin dayaal

धन्ना भगत

धन्ना भगत

रे चित चेतसि कीन दयाल

धन्ना भगत

और अधिकधन्ना भगत

    रे चित चेतसि कीन दयाल, दमोदर विवहित जानसि कोई।

    जे धावहि वंड ब्रहिमंड कउ, करता करै सु होई॥

    जननी केरे उदर-उदक महि, पिंडु कीआ दस दुआरा।

    देइ अहारु अगनि महि राषैं, ऐसै षसमु हमारा॥

    कुंभी जल माहि तन तिसु, बाहरि पंष पीरु तिन्ह नाही।

    पूरन परमानन्द मनोहर, समझि देषु मद माही॥

    पाषणि कीटु गुपतु होइ रहता, ताचो मारगु नाही।

    कहे धंना पूरन ताहू को, मतरे जाअ डराही॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 139)
    • संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
    • रचनाकार : धन्ना भगत
    • प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1981

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