प्रीतम प्रीति लगन मन फँसियाँ
piritam priti lagan man phansiyan
प्रीतम प्रीति लगन मन फँसियाँ॥
निरखत नैन चैन चितवन में, दीप दृगन चढ़ चसियां॥
पल पल लगन लगी वोहि मारग, सुरति सिखर पर बसियां॥
दृढ़ करि डोर पोढ़ पद परखी, लखि गुरू गगन परसियां॥
तुलसी तलब तलासी पावे, धार अधर धर धसियां॥
विरहिणी कहती है कि मेरा मन प्रीतम की प्रीत और लगन में फँसा है। जब मैं अपने प्रीतम के नैनों को ताकती हूँ तब मेरे चित्त को चैन मिलता है और मेरे अंतर के नैन ऊपर चढ़कर दीपक की तरह चमकते हैं। मेरी लगन हर वक़्त पिया के मार्ग पर लग रही है और मेरी सुरत चढ़कर शिखर पर बसती है। मैंने सुरत की डोर से अपने गुरू के चरणों को दृढ़ करके पकड़ा है और गुरू के दर्शन करके गगन पर पहुँची हूँ। तुलसी साहब फ़रमाते हैं कि कोई खोजी ही पिया के घर की ख़बर पाता है और अधर की धार को पकड़ कर अंतर में धसता है।
- पुस्तक : तुलसी साहब (हाथरस वाले) की बानी (पृष्ठ 19)
- संपादक : ज्ञान दास माहेश्वरी
- रचनाकार : तुलसी साहब
- प्रकाशन : स्वामी बाग, आगरा
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