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माटी को पुतरा कैसे नचतु है

mati ko putra kaise nachatu hai

रैदास

रैदास

माटी को पुतरा कैसे नचतु है

रैदास

और अधिकरैदास

    माटी को पुतरा कैसे नचतु है।

    देखै देखै सुनै बोलै दऊरिउं फिरतु है।

    जब कछु पावै गरब करतु है, माइआ गई तब रोवनु लगतु है॥

    मन बच क्रम रस कसहिं लुभाना, विनसि गइआ जाइ कहूँ समाना॥

    कहि रैदास बाजी जगु माई, बाजीगर सऊं मोहिं प्रीति बनिआहिं॥

    मनुष्य मिट्टी का पुतला है। यह माया के वशीभूत हो इधर−उधर नाचता फिरता है। माया के चक्कर में अज्ञानी होकर यह सबको देख−देखकर, उनकी बातें सुनते हुए और अभिमान पूर्ण वचन बोलते हुए चारों तरफ़ दौड़ा−दौड़ा फिरता है। इसे जब कुछ मिल जाता है तब गर्व करने लगता है और माया के चले जाने पर यह आँसू बहाता है। मन, वचन और कर्म से यह विषयादि रसों में डूबा रहता है किंतु जब यह नष्ट हो जाता है तो पता नहीं कहाँ समा जाता है। संत रैदास कहते हैं कि संसार एक तमाशा है और जो बाज़ीगर इस तमाशे को दिखाने वाला है, उसी ईश्वर रूपी बाज़ीगर से मेरी प्रीति हो गई है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 299)
    • रचनाकार : डॉ. जगदीश शरण
    • प्रकाशन : साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2011

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