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मनुवा! मनमोहन गाय रे

manuvaa manmohan gaay re

संत परशुरामदेव

संत परशुरामदेव

मनुवा! मनमोहन गाय रे

संत परशुरामदेव

और अधिकसंत परशुरामदेव

    मनुवा! मनमोहन गाय रे।

    अति आतूर होय के हरि-हरि, सुमिरि-सुमिरि सुख पाय रे॥

    हरि सुख सिंधु भजत भजताँ, सुनि सब दुख दोस दुराय रे।

    यौ औसर फिरि मिळै मिलिहै, तौ भजि लीजै हरि राय रे॥

    पतित-पतित पावन करि कैं, जमपुर ते लैहिं बुलाय रे।

    यह हरि साखि समुझि सुनि चित करि, भज मन बिलँब लाय रे॥

    करि आरति हित सौं हरि सन्मुख, सक्यौ सीप नवाय रे।

    जनमि-जनमि जमद्वार निरादर, बारंबार बिकाय रे॥

    अति संकट बूड़त भव जल में, अंत और सहाय रे।

    तोहि और हरि परम हितू बिन, को राखै अपनाय रे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 278)
    • संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
    • रचनाकार : संत परशुरामदेव
    • प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
    • संस्करण : जनवरी 1955

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