मनुवा! मनमोहन गाय रे
manuvaa manmohan gaay re
मनुवा! मनमोहन गाय रे।
अति आतूर होय के हरि-हरि, सुमिरि-सुमिरि सुख पाय रे॥
हरि सुख सिंधु भजत भजताँ, सुनि सब दुख दोस दुराय रे।
यौ औसर फिरि मिळै न मिलिहै, तौ भजि लीजै हरि राय रे॥
पतित-पतित पावन करि कैं, जमपुर ते लैहिं बुलाय रे।
यह हरि साखि समुझि सुनि चित करि, भज मन बिलँब न लाय रे॥
करि आरति हित सौं हरि सन्मुख, सक्यौ न सीप नवाय रे।
जनमि-जनमि जमद्वार निरादर, बारंबार बिकाय रे॥
अति संकट बूड़त भव जल में, अंत न और सहाय रे।
तोहि और हरि परम हितू बिन, को राखै अपनाय रे॥
- पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 278)
- संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रचनाकार : संत परशुरामदेव
- प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
- संस्करण : जनवरी 1955
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