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जहं बैसालहि तह बैसा सुआमी

jahan baisalahi tah baisa suami

गुरु अमरदास

गुरु अमरदास

जहं बैसालहि तह बैसा सुआमी

गुरु अमरदास

और अधिकगुरु अमरदास

    जहं बैसालहि तह बैसा सुआमी, जह भेजहि तह जाबा।

    सभ नगरी महि एको राजा, सभे परि तुहहि थावा॥

    बाबा देहि बसा सच गावा, जाते सहजे सहजि समावा॥रहाउ॥

    बुरा-भला किछु आपस ते जानिआ, एई सगल विकारा।

    इहु फुरमाइआ खसम का होआ, बरतै इहु संसारा॥

    इंद्री धातु सबल कहीअतु है, इंद्री किसते होई।

    आपै खेल करै सभि करता, ऐसा बूझै कोई॥

    गुर परसादी एक लिव लागी, दुविधा तदे बिनासी।

    जो तिसु भाणा सु सति करि मानिआ, काटी जम की फांसी॥

    भणति नानकु लेखा मांगै, कलना जाचू का मनि अभिमाना।

    तासु-तासु धरमराइ जपतु है, पए सचे की सरना॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 160)
    • संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
    • रचनाकार : अमरदास
    • प्रकाशन : किताब महल, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1981

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