हर जेठ जुड़ंदा लोड़ीऐ जिस अगै सभ निवंन॥
हर सजण दावण लगिआ किसै न देई बंन।
माणक मोती नाम प्रभ उन लगै नाही संन॥
रंग सभे नाराइणै जेते मन भावंन।
जो हर लोड़े सो करे सोई जीअ करंन॥
जो प्रभ कीते आपणे सेई कहीअह धंन।
आपण लीआ जे मिलै विछुड़ किउ रोवंन॥
साधू संग परापते नानक रंग माणंन।
हर जेठ रंगीला तिस धणी जिस कै भाग मथंना॥
जेठ के महीने में उस प्रभु से जुड़ने की कामना करनी चाहिए जिसके आगे सब नतमस्तक हो जाते हैं। अगर उस साजन का दामन पकड़ लिया जाए, तो फिर वह हमें यमदूतों के सुपुर्द नहीं करता, शरण आए की लाज रखता है। परमात्मा का नाम ऐसा अनुपम लाल या मोती है जिसे कोई चुरा नहीं सकता। प्रभु सब मनोवांछित सुख प्रदान करने में सक्षम है, उसके रंग न्यारे हैं। हरि वही करता है जो उसको मंजूर होता है और जीवों को भी वही करना पड़ता है जो उस हरि को प्रिय है। धन्य हैं वे जीव जिन्हें प्रभु अपना बना लेता है। उसकी शरण का सौभाग्य अपनी इच्छा से प्राप्त नहीं किया जा सकता। अगर ऐसा करना अपने वश में होता, तो वियोग का दुःख क्यों सहन करना पड़ता? प्रभु की प्राप्ति का आनंद वही पाता है जिसको साधु का संग प्राप्त हो जाता है। वह आनंदस्वरूप प्रभु उसी को प्राप्त होता है जिसके भाग्य में लिखा हो। मनुष्य जन्मरूपी जेठ का महीना भी उसी के लिए आनंददायक होता है।
- पुस्तक : गुरु अर्जुन देव (पृष्ठ 234)
- संपादक : महिंदर सिंह जोशी
- रचनाकार : गुरु अर्जुनदेव
- प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास
- संस्करण : 2012
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