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गगन मगन धुनि लगन लगी

gagan magan dhuni lagan lagi

संत केशवदास

संत केशवदास

गगन मगन धुनि लगन लगी

संत केशवदास

और अधिकसंत केशवदास

    गगन मगन धुनि लगन लगी, सुनत-सुनत तन तृप्त भई।

    जगर-मगर नहिं डगर-बगर नहिं, रबि-ससि निसु-दिन भाव नहीं॥

    प्रान गवन हरि पवन मवन करि, मिलि सन्मुख पिय बाँह गही।

    सत रति सत्त पती हम पावल, केसोदास सुहाग सही॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : केशवदासजी की अमीघूँट (पृष्ठ 7)
    • रचनाकार : केशवदास
    • प्रकाशन : बेलविडियर प्रिंटिग प्रेस, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1979

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