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गगन के गुमठ पर

gagan ke gumath par

तुलसी साहब

तुलसी साहब

गगन के गुमठ पर

तुलसी साहब

और अधिकतुलसी साहब

    गगन के गुमठ पर गैब का चाँदना।

    संत बिन भेद नहिं हाथ आवै॥

    हद्द बेहद्द के पार परचा मिले।

    होय निज हंस सोई महल पावे॥

    अगमपुर बास अँह नाहिं जम त्रास है।

    काल का अमल बल नाहिं जावे॥

    दास तुलसी हुज़ूर दरबार है।

    अलख और ख़लक़ दोउ नाहिं आवे॥

    गगन यानी त्रिकुटी के शिखर पर अदृश्य मालिक का नूर झलकता है। उसका भेद संतों की दया के बिना कोई नहीं जान सकता है। पिंड और ब्रह्मांड के पार पहुँचने पर ही यह भेद मालूम हो सकता है और सच्ची हंस गति प्राप्त होने पर ही उस लोक में यानी सत्तलोक में प्रवेश मिल सकता है। अगमपुर यानी सत्तलोक में तो काल का बास है और उसका भय है। वहाँ उसका हुक्म ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं चलती है। तुलसी साहब फ़रमाते हैं कि वह सत्तपुरुष का दरबार है और काल काल की रचना दोनों का वहाँ गम नहीं है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुलसी साहब (हाथरस वाले) की बानी (पृष्ठ 141)
    • संपादक : ज्ञान दास माहेश्वरी
    • रचनाकार : तुलसी साहब
    • प्रकाशन : स्वामी बाग, आगरा
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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