दिल साबत हज काबो नेड़ै
dil sabat haj kabo neDai
दिल साबत हज काबो नेड़ै, क्या उलबंग पुकारो।
भाई नाऊँ बलद पीयारो, ताकै गळै कर्द क्यों सारो॥
बिन चीन्हैं खुदाय बिबरजत, केहा मुसलमानों।
काफ़र मूकर होय कर राह गमायौ, जोय-जोय ग़ाफ़ल करै धिगाणों॥
ज्यों थे पच्छिम दिशा उलबंग पुकारो, भल जे यों चीन्हों रहमाणों।
तो रूह चलंते पिंड पंड़ते, आवै भिस्त बिवाणों॥
चढ़-चढ़ भींते मड़ी मसीते, क्या उलबंग पुकारो।
काहे काजै गऊ बिणासो तो करीम गऊ क्यों चारी॥
काहीं लीयों दूधूं दहियो काहीं लीयो घीयों महियों।
काहीं लीयो हाडूं मासूं काहीं लीयों रक्तुं रुहियों॥
सुण रे क़ाज़ी! सुण मुल्लां यामें कौंण भया मुरदारूँ।
जीवां ऊपर ज़ोर करीजै, अंतकाल होयसी भारूँ॥
जिसका हृदय सच्चा है उसके लिए काबे की हज नज़दीक ही है। फिर तुम उसको पाने के लिए क्या ऊँची बांगें अजान लगाते हो? ख़ुदा के लिए बांग लगाने वालों! किसान को बैल भाई से भी अधिक प्रिय होता है, तुम उसकी गर्दन पर करद क्यों चलाते हो? चाहे जितनी बांगें लगाई जाए बिना पहचान के वह ख़ुदा उससे अलग ही रहता है। जो ख़ुदा को नहीं जानता वह कैसा मुसलमान? काफ़िर ने ख़ुदा से किए अपने वादे से मुकर कर अपने जीवन के मार्ग को नष्ट कर लिया फिर भी वह मूर्ख पश्चिम की ओर मुँह करके हठपूर्वक ईश्वर को देखना चाहता है। पश्चिम दिशा की ओर जैसे तुम आवाज़ लगाते हो, इस विधि से भला वह ईश्वर यदि पहचान जाता तो निश्चय ही इस प्रकार परमात्मा को पहचानने वालों के लिए उनके देहावसान के समय स्वर्ग से विमान आते; पर ऐसा नहीं देखा गया। तब तुम उसको पाने के लिए मक़बरे की दीवाल तथा मस्जिद पर चढ़-चढ़ कर क्यों ऊँची आवाज़ें लगाते हो? तुम गाय को क्यों मारते हो? यदि यह मारने योग्य होती तो 'करीम' गायें क्यों चराते! तुमने इसका दूध-दही क्यूँ खाया? किसलिए इसके घी और छाछ का उपभोग किया? जब इसका दूध पीया तो इसके हाड़ और मांस के लिए क्यूँ इसकी जान लेने पर तुले हो? हे काज़ी सुनो! मुल्ला, तुम भी सुनो! इन बध्य और बधिक में मृतक समान कौन हुआ? जीवों पर जो ज़ोर-ज़ुल्म करेगा उसके लिए अंतकाल भयंकर रूप से कष्टदायक होगा।
- पुस्तक : जाम्भोजी की वाणी (पृष्ठ 190)
- रचनाकार : जाम्भोजी
- प्रकाशन : Vikas Prakashan
- संस्करण : 2001
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