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धनि-धनि पीव की राजधानी हो

dhani dhani peew ki rajdhani ho

तुरसीदास निरंजनी

तुरसीदास निरंजनी

धनि-धनि पीव की राजधानी हो

तुरसीदास निरंजनी

और अधिकतुरसीदास निरंजनी

    धनि-धनि पीव की राजधानी हो।

    सुरनर मुनि जाकै उलगाणा, इंद्र धुरै नीसानी हो॥

    औनी आप जमाइ जुगति स्यूँ, मारुति माहिं समानी हो।

    अंबर अधर धर्यो बिन खंभा, चंद सूर अगिवानी हो॥

    ब्रह्मा कुलाल कुमेर भडारी, चित्र विचित्र लिखतानी हो।

    धरम राइ जाकै कोटवाल, छप्पन कोडि भरै पानी हो॥

    सेस सहस मुखि कीरत गावै, नारद से मुनि ग्यानी हो।

    सनकादिक जाकै ब्रह्माचारी, शंकर से मुनि ध्यानी हो॥

    सब देवन में देव गुसाईं, सबके अंतरजामी हो।

    अरध-अरध मधि तुम्ह ही व्यापिक, तीनि लोक सिरिनामी हो॥

    जैसे नदीया समदि समानी, बहोरि उलधै पानी हो।

    जन तुरसी मिलि रह्या परसिपरि, सबद रह्या सहबानी हो॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : निरंजनी सप्रदाय और संत तुरसीदास निरंजनी (पृष्ठ 141)
    • संपादक : भगीरथ मिश्र
    • रचनाकार : तुरसीदास निरंजनी
    • प्रकाशन : राष्ट्रभाषा मुख्यालय, पुणे
    • संस्करण : 1964

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