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कतिक करम कमावणे

katik karam kamawne

गुरु अर्जुनदेव

गुरु अर्जुनदेव

कतिक करम कमावणे

गुरु अर्जुनदेव

और अधिकगुरु अर्जुनदेव

    कतिक करम कमावणे दोस काहू जोग॥

    परमेसर ते भुलिआं विआपन सभे रोग।

    वेमुख होए राम ते लगन जनम विजोग॥

    खिन मह कउड़े होए गए जितड़े माइआ भोग।

    विच कोई कर सकै किस थै रोवह रोज॥

    कीता किछू होवई लिखिआ धुर संजोग।

    वडभागी मेरा प्रभ मिलै तां उतरह सभ बिओग॥

    नानक कउ प्रभ राख लेह मेरे साहिब बंदी मोच।

    कतिक होवै साधसंग बिनसह सभे सोच॥

    हर किसी को अपने किए कर्मों का फल भोगना पड़ता है। कोई किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकता। परमेश्वर को भुलाने से जीव को सभी तरह के रोग लग जाते हैं। जो प्रभु से विमुख हो जाते हैं, उन्हें जन्म-जन्मांतरों तक वियोग का संताप सहना पड़ता है। माया के भोगों का रस क्षणमात्र के लिए ही स्वादिष्ट होता है और पीछे कड़वापन (दुःख और पश्चात्ताप) छोड़ जाता है। कर्मों को भुगतने के मामले में कोई बीच-बचाव नहीं कर सकता। फिर आपबीती का दुःख रोज़-रोज़ किसके पास जाकर रोया जाए? जीव के अपने बल से कुछ नहीं हो सकता, होता वही है जो भाग्य में लिखा है। अगर सौभाग्य से प्रभु मिलन हो जाए, तो जन्म-जन्मांतरों का वियोग ख़त्म हो जाता है। गुरु साहिब प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! तू मुझे बंधन मुक्त कर दे। कार्तिक के महीने से यही उपदेश है कि अगर साधु की संगति प्राप्त हो जाए तो हर प्रकार की चिंता का अंत हो जाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु अर्जुन देव (पृष्ठ 239)
    • संपादक : महिंदर सिंह जोशी
    • रचनाकार : गुरु अर्जुनदेव
    • प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग ब्यास
    • संस्करण : 2012
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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