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देखो दृष्ट पसार

dekho drisht pasar

तुलसी साहब

तुलसी साहब

देखो दृष्ट पसार

तुलसी साहब

और अधिकतुलसी साहब

    देखो दृष्ट पसार सार कुछ जग में नाहीं।

    दिना चार का रंग संग नहिं जावे भाई॥

    धन संपत परिवार काम एको नहिं आवे।

    अरे हारे तुलसी दीपक संग।

    पतंग प्रान छिन में तज जावे॥

    हे भाई! तुम सर्वत्र अपनी दृष्टि फैलाकर देख लो कि इस संसार में कुछ भी सार सत्य नहीं हैं, यानी यहाँ सब मिथ्या नाशवान है। यहाँ के राग रंग यानी सुख भी चंद दिनों के हैं और मृत्यु होने पर यहाँ की कोई चीज़ साथ नहीं जाती है। धन संपत्ति, कुटुंब परिवार और कोई भी काम नहीं आएगा। जैसे पतंगा दीपक का संग करके एक क्षण में प्राण तज कर चला जाता है और दीपक उसकी रक्षा नहीं कर सकता है, वैसे ही परिवार के जन अन्य लोग भी तेरी कोई सहायता नहीं कर पाएँगे और तू मृत्यु को प्राप्त हो जावेगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुलसी साहब (हाथरस वाले) की बानी (पृष्ठ 28)
    • संपादक : ज्ञान दास माहेश्वरी
    • रचनाकार : तुलसी साहब
    • प्रकाशन : स्वामी बाग, आगरा

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