चूनर मेरी मैली भई
chunar meri maili bhai
चूनर मेरी मैली भई, अब का पै जाऊँ धुलान।
घाट-घाट मैं खोजत हारी, धुबिया मिला न सुजान॥
नइहर रहुँ कस पिया घर जाऊँ बहुत मरे मेरे मान।
नित-नित तरसूँ पल-पल तड़पूँ, कोइ धोवे मेरी चूनर आन॥
काम दुष्ट और मन अपराधी, और लगावें कीचड़ सान।
कासे कहूँ सुने नहिं कोई, सब मिल मरते मेरी हान॥
सखी सहेली सब जुड़ आईं, लगीं भेद बतलान।
राधास्वामी धुबिया भारी, प्रगटे आय जहान॥
- पुस्तक : संत काव्य-धारा (पृष्ठ 346)
- संपादक : परशुराम चतुर्वेदी
- रचनाकार : संत शिवदयाल
- प्रकाशन : किताब महहल, इलाहाबाद
- संस्करण : 1981
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