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चारि बरन सूँ हरि जन ऊँचे

chaari baran suu.n hari jan uu.nche

चरनदास

चरनदास

चारि बरन सूँ हरि जन ऊँचे

चरनदास

और अधिकचरनदास

    चारि बरन सूँ हरि जन ऊँचे।

    भये पबित्तर हरि के सुमिरे तन के उज्जल मन के सूचे॥

    जो पतीजै साखि बताऊँ सबरी के जूठे फल खाये।

    बहुत ऋषीसर ह्वाँई रहते तिन के घर रघुपति नहिँ आए॥

    भिल्लनि पाँव दियो सरिता में सुद्ध भयो जल सब कोइ जानै।

    मंद हुतो सो निरमल हूवो अभिमानी नर भयो खिसाने॥

    बम्हन छत्री भूप हुते बहु बाजो संख सुपच जब आयो।

    बाल्मीक जब पूरन कीन्हो जै जै कार भयो जस गायो॥

    जाति बरन कुल सोई नीको जाते होय भक्ति परकास।

    गुरै सुकदेव कहत हैं तो को हरि जन सेव चरन हीं दास॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 176)
    • रचनाकार : चरनदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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