भली भई ज्ञान प्रकास भयौ
bhali bhai gyan prkas bhayau
भली भई ज्ञान प्रकास भयौ।
मिट्यौ जु तिमिर तन-मन सुरझानौ, कालखिसाइ गयौ॥
पाप-पुनि कौ उदिम थाक्यौ, निर उदिम होइ रह्यो।
जुरामरन जुगजीति जुगति सूँ, हरि मारग निबह्यो॥
साच झूठ भिनि करि दिखलाए, भरम तजि करम दह्यो।
नृगुन घृत मथि लीयौ जुगति सूँ, छाड्यो श्रगुन मह्यौ॥
पंचतत गुनतीन विबरजित, सोई पद उलटि गह्यो।
जन तुरसी गुरकबीर करता सगि, सकल सुहाग लह्यो॥
- पुस्तक : निरंजनी सप्रदाय और संत तुरसीदास निरंजनी (पृष्ठ 161)
- संपादक : भगीरथ मिश्र
- रचनाकार : तुरसीदास निरंजनी
- प्रकाशन : राष्ट्रभाषा मुख्यालय, पुणे
- संस्करण : 1964
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